उसकी कलम से इससे भी बढ़कर फ़साने लिखे जायेगें। उसकी कलम से इससे भी बढ़कर फ़साने लिखे जायेगें।
निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें
ज़रा सोचा है कैसे मैं जियूँगा, दिया जो ज़ख्म है वो कैसे सियूँगा। ज़रा सोचा है कैसे मैं जियूँगा, दिया जो ज़ख्म है वो कैसे सियूँगा।
क्यों फिर रखते दरकार बाती दिया बिन बेकार क्यों फिर रखते दरकार बाती दिया बिन बेकार
भरेगा कब पेट दोनों का ये पापी पेट का सवाल है। भरेगा कब पेट दोनों का ये पापी पेट का सवाल है।
जहाँ यादों के झरोखों पे मिट्टी नहीं होगी रोज़ धूप की तरह बिखरेंगे सुनहरे पल जहाँ बिन बताए मैं जो स... जहाँ यादों के झरोखों पे मिट्टी नहीं होगी रोज़ धूप की तरह बिखरेंगे सुनहरे पल जह...